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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का
प्रतिदान कैसे दूँ !
अनोखे इस सरल मधु-प्यार का
:प्रतिदान कैसे दूँ !
विश्वास था इतना —
न दुर्बल हो सकूंगा मैं,
विश्वास था इतना
न मन-बल खो थकूंगा मैं !
पर, रुका हूँ,
सोचता हूँ
एक मंज़िल पर —
कि कैसे बन सकूँ मैं अंग, साथी
:इस तुम्हारे मोह के संसार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:स्नेह पाया था ;
:कहानी बन गयी !
:अवश निशानी बन गयी !
:अफ़सोस है गहरा
:कि उसका गीत ही अब गा रहा हूँ,
:और अपने को
:विवश-निरुपाय कितना पा रहा हूँ !
:और ही पथ आज मेरे सामने
:जिस पर निरंतर जा रहा हूँ !
:सोचता हूँ —
:साथ कैसे दूँ तुम्हारे राग में
:जो बज रहा है ज़िन्दगी के तार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:उन्माद भावुकता सभी तो
:आज मुझसे दूर हैं,
:स्वर्णिम-सुबह की रश्मियाँ सब
:श्याम-घन के आवरण में
:बद्ध हो मजबूर हैं !
:औ’ युग-विरोधी आँधियाँ हैं;
:पर, तुम्हारी याद कर
:इन आँधियों के बीच भी
:पुरज़ोर रह-रह सोचता हूँ —
:किस तरह दूंगा तुम्हें
:वह अंश जीवन का
:मिला है जो तुम्हें
:सच्चे हृदय के स्नेह के अधिकार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:1949
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का
प्रतिदान कैसे दूँ !
अनोखे इस सरल मधु-प्यार का
:प्रतिदान कैसे दूँ !
विश्वास था इतना —
न दुर्बल हो सकूंगा मैं,
विश्वास था इतना
न मन-बल खो थकूंगा मैं !
पर, रुका हूँ,
सोचता हूँ
एक मंज़िल पर —
कि कैसे बन सकूँ मैं अंग, साथी
:इस तुम्हारे मोह के संसार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:स्नेह पाया था ;
:कहानी बन गयी !
:अवश निशानी बन गयी !
:अफ़सोस है गहरा
:कि उसका गीत ही अब गा रहा हूँ,
:और अपने को
:विवश-निरुपाय कितना पा रहा हूँ !
:और ही पथ आज मेरे सामने
:जिस पर निरंतर जा रहा हूँ !
:सोचता हूँ —
:साथ कैसे दूँ तुम्हारे राग में
:जो बज रहा है ज़िन्दगी के तार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:उन्माद भावुकता सभी तो
:आज मुझसे दूर हैं,
:स्वर्णिम-सुबह की रश्मियाँ सब
:श्याम-घन के आवरण में
:बद्ध हो मजबूर हैं !
:औ’ युग-विरोधी आँधियाँ हैं;
:पर, तुम्हारी याद कर
:इन आँधियों के बीच भी
:पुरज़ोर रह-रह सोचता हूँ —
:किस तरह दूंगा तुम्हें
:वह अंश जीवन का
:मिला है जो तुम्हें
:सच्चे हृदय के स्नेह के अधिकार का !
:प्रतिदान कैसे दूँ
:तुम्हारे मूक निश्छल प्यार का !
:1949
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