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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>

:बस, तुम्हारी याद मेरे साथ है !

:आज यह बेहद पुरानी बात की
:ध्यान में फिर बन रही तसवीर क्यों ?
:आज फिर से उस विदा की रात-सा
:आ रहा है नयन में यह नीर क्यों ?
::सिर्फ़ जब उन्माद मेरे साथ है !

:कह रही है हूक भर यह चातकी
:‘प्रेम का यह पंथ है कितना कठिन,
:विश्व बाधक देख पाता है नहीं
:शेष रहती भूल जाने की जलन !’
::बस, यही फ़रियाद मेरे साथ है !

:पर, तुम्हारी याद जीवन-साध की
:वह अमिट रेखा बनी सिन्दूर की ;
:आज जिसके सामने किंचित् नहीं
:प्राण को चिंता तुम्हारे दूर की,
::देखने को चाँद मेरे साथ है !
:1949
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