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याद / महेन्द्र भटनागर

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:आज बरसों की पुरानी आ रही है याद !

:सामने जितना पुराना पेड़ है
::उतनी पुरानी बात,
:हो रही थी जिस दिवस आकाश से
::रिमझिम सतत बरसात,
:छिप गया था श्यामवर्णी बादलों में चाँद !

:तुम खड़ी छत पर, अँधेरे में सिहर
::कर गा रही थीं गीत,
:पास आया था तभी मैं भी ; मिले
::थे स्नेह से दो मीत ;
:आज नयनों में उसी का शेष है उन्माद !
:1949
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