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19:02, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:संसार समझ कब पाया
:मेरे जीवन का अभिनय !
:मेरे जीवन की धरती पर
:ऊबड़-खाबड़ पथ
:सर-सरिता, गिरि-वन,
:मैदान-पठार बने;
:मरुथल, दलदल;
:सुख-दुख का क्रम,
:उत्थान-पतन
:मुसकान-रुदन
:है हार-विजय ?
:मेरे जीवन के अम्बर में
:आँधी झंझा,
:हिम का वर्षण,
:पानी की बूँदों की रिमझिम,
:गर्जन-स्वर है, विद्युत कंपन ;
:क्षण देदीप्य अमर सविता-चंदा जैसे,
:उल्काएँ भी नश्वर !
:सुन्दर और असुन्दर,
:शिव और अशिव
:भावों का संचय !
:1945