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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:नहीं है रोशनी यह वह
:जिसे बादल जलाता है !
:नहीं वैसी चमक तड़पन,
:नहीं वैसी भरी सिहरन
:नहीं उन्माद है वैसा
::जिसे यौवन सजाता है !
:नहीं बल आँधियों का यह,
:नहीं स्वर दृढ़-हियों का यह
:नहीं वह गीत जीवन का
::जिसे आकाश गाता है !
:1944
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:नहीं है रोशनी यह वह
:जिसे बादल जलाता है !
:नहीं वैसी चमक तड़पन,
:नहीं वैसी भरी सिहरन
:नहीं उन्माद है वैसा
::जिसे यौवन सजाता है !
:नहीं बल आँधियों का यह,
:नहीं स्वर दृढ़-हियों का यह
:नहीं वह गीत जीवन का
::जिसे आकाश गाता है !
:1944
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