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19:04, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:अभी नहीं तूफ़ान उठा है !
:कुहराम नहीं
:काँपी न मही
:टूटे न अभी नभ के तारे,
:प्रतिद्वन्द्वी स्वर न थके हारे
::अभी नहीं जन-जन के मन में
::मुक्ति इष्ट का भाव जगा है !
:संघर्ष अथक
:नव-ज्योति चमक
:फूटी न कहीं अंदर-बाहर,
:किंचित उमड़ा न हृदय-सागर,
::अभी नहीं नव-रवि की किरणें
::वसुधा पर तम विजन घना है !
:सुनसान डगर
:बीहड़ मर्मर
:तरुवर सूखे जर्जर लुण्ठित,
:संसृति का कण-कण अपमानित,
::अभी नहीं सबके जीने का
::पीड़ित जग ने मंत्र सुना है !
:बदले दुनिया,
:गुज़रें सदियाँ
:क्रूर दमन की, बर्बरता की,
:मानव-मन की दुर्बलता की,
::अभी न नव जग में माता ने
::नव शिशु का रुदन सुना है !
:1949