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Kavita Kosh से
नाम पुकारत हुंकरत आएँ,
श्याम सलोनी संध्या आती,
पहन के पायल पाँव... कैसे...भूलूँ
यहाँ न उगता सूरज दिखता,
लम्बी लम्बी सड़कें काली,
सिर्फ शोर है और शोर है
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