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|रचनाकार=नीता कुकरेती
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
सांख्यूं बटै खड़ू च अफार, ये कु बोलदन हिमालय
द्धो देवतों कू यो च घर-बार,ये कु बोलदन हिमालय
देवात्मा नगाधिराज यो च,देश कु सिरमौरया ताज यो च
धारा नौला छौयों कु यू सोत च पोथला पछ्यूं कु यू त घोल च
ये का परताप भोर्यां छा कुठार, ये कु बोलदन हिमालय
येका धोरा भी जू क्वी आई, येकी माया मा अलझे ग्याई
लेकी वे तैं अंग्वाल मां अपणी,पाड़ की रीत प्रीत सिखै द्याई
ये का बरसू बटि छन उपकार, ये कु बोलदन हिमालय
देशे सीमा कू यू पहरेदार च, अर दुश्मन का वास्ता अंगार च।
जैन भी वै हथ्यौण की सोची, वेका वास्ता वू भेल भंगार च
वे का पैना ढुंगा गारा छन हथियार,ये कु बोलदन हिमालय
जोगी योगी मुनियों को घौर-बार च, बथों पाणी गोर मनख्यूं को प्राण च
देणवाला येका हाथ हजार छन, लेणवाला ही निकज्जा बेइमान छन
टक लगैकि देखा ईं अन्वार , ये कु बोलदन हिमालय
</poem>
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सांख्यूं बटै खड़ू च अफार, ये कु बोलदन हिमालय
द्धो देवतों कू यो च घर-बार,ये कु बोलदन हिमालय
देवात्मा नगाधिराज यो च,देश कु सिरमौरया ताज यो च
धारा नौला छौयों कु यू सोत च पोथला पछ्यूं कु यू त घोल च
ये का परताप भोर्यां छा कुठार, ये कु बोलदन हिमालय
येका धोरा भी जू क्वी आई, येकी माया मा अलझे ग्याई
लेकी वे तैं अंग्वाल मां अपणी,पाड़ की रीत प्रीत सिखै द्याई
ये का बरसू बटि छन उपकार, ये कु बोलदन हिमालय
देशे सीमा कू यू पहरेदार च, अर दुश्मन का वास्ता अंगार च।
जैन भी वै हथ्यौण की सोची, वेका वास्ता वू भेल भंगार च
वे का पैना ढुंगा गारा छन हथियार,ये कु बोलदन हिमालय
जोगी योगी मुनियों को घौर-बार च, बथों पाणी गोर मनख्यूं को प्राण च
देणवाला येका हाथ हजार छन, लेणवाला ही निकज्जा बेइमान छन
टक लगैकि देखा ईं अन्वार , ये कु बोलदन हिमालय
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