{{KKCatKavita}}
<poem>
नहीं पलों क्षणों में पतझड़ बीता औ बसंत का हुआ आगमन,सूखी डालों को पल क्षण भर में नहीं मिला है वासंतिक धन।धन
नहीं जगे ये बौर अचानक नहीं ख़ुशी पल खुशी क्षण-भर में छाई, नहीं पलों क्षणों में इस धरती पर मधुर -धूप ने ली अंगड़ाई।अंगड़ाई
शिशिर-काल इन सब ने सबने झेलाऔ संघर्ष किया पतझड़ से, जुड़े रहे ये दुख के क्षण दुखद समय में अपने जीवन रूपी जड़ से।से
इसी तरह जीवन का पतझड़ समय बीतते है टल जाता, जिसमें विपदा से जो लड़ बचता है संघर्ष की शक्ति वह ही वासंतिक फल खाता।खाता
</poem>