भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अंगना मेॅ दाना आबी केॅ
चुगै छलै बगरो
फुदकी.-फुदकी बुलै छलै हो
उड़ै छलै बगरो
आबे कन्हौं कहां सुनै छी
चींचींचीं के स्वर
बड़का.-बड़का चिड़िया के
ऊ बच्चा रँग लागै
बगरो सब चिड़िया मेॅ सबसेॅ