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उँगली की हरकत / ऋतु त्यागी

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<poem>
मैंने जब- जब
तुम्हारी आँखों पर गिरा पर्दा सरकाया
तुम ने कहा
"रहने दो तेज रोशनी मेरी आंखों को हजम
नहीं होती"
मैंने जब -जब तुम्हें बताया
कि
"तुम्हें अकेले ही तय करने हैं उम्र के फ़ासले"
तुम ने कहा
"छोड़ो मुझे अकेले चलने का शौक़ नहीं है"
मैंने जब- जब तुम्हें दिलासाओं के ख़त दिए
तुमने कहा "ऐसे ही भेजते रहना"
तब मैंने पलट कर सिर्फ़ इतना कहा
"सुनो!
मैं तो सिर्फ इशारा भर हूँ
उँगली की हरकत तो तुम ही हो"|
</poem>
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