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किसनवन / शार्दूल कुशवंशी

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<poem>
सभ मिली पूछले किसनवन कि हमनी के कब बनी?
सुनर महल अटरिया कि कब बनी?
रोई रोई कहली खदेरन बो चाची
कि नाही बनी!
हमनी महल अटरिया कि नाही बनी।
पूछले किसुन चाचा हमनी बुलाई
कि कबतक ना?
हमनी सहब जा बिपदा के मारि कि कबतक ना?
जिनगी सेराईल हाड़ ठेठावत कि तबो नाही ना?
कि सुनर झोपड़ा ना भईले कि तबो नाही ना?
कहे के त केतना अईले सरकार जी कि तबो नाही ना?
हमनी दुखवा सेरईले कि तबो नाही ना?
सभे छलले किसनवन के उजर खोलि ओढी ना।
छछनी छछनी रोवे गोद के बलकवा कि नाही मिले ना?
भर पेट पिअेके दुधवा कि नाही मिले ना
आपन बालकवा के रोई-रोई देखिके रोये लागस ना?
भरि भरि अंखियन से लोरवा कि ढरके लागल ना?
सुनर अंखिया में लाली जे डोरवा कि दिखे लागल ना?
देखि दुखवा किसनवन के आंखि भरे ना?
</poem>
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