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<poem>
साँस तू अब संभलना छोड़ दे
दिल मेरा तू भी घड़कना छोड़ दे

बाग़ में अब फूल खिलते ही नहीं
फिर तो ऐ तितली मचलना छोड़ दे

रोशनी दिखती नहीं अब चार सू
घर से अब बाहर निकलना छोड़ दे

क्या पता वह सच ही बोले अब यहाँ
झूठ के पल्लू़ पकड़ना छोड़ दे

दिन ढले सूरज कहीं गुम जायगा
धूप मुट्ठी में जकड़ना छोड़ दे

किस घड़ी उसका बुलावा आ चले
राकेश अब तू अकड़ना छोड़ दे
</poem>
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