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|रचनाकार=गोविन्द राकेश
|अनुवादक=
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}}
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<poem>
सलीक़़ा़ सीख ही पाया नहीं है
तभी रोना उसे आया नहीं है
बहुत ताज़ा नहीं लगता अभी वो
मगर देखो ये कुम्हलाया नहीं है
कहानी अब नहीं कहता नई वो
पुराना गीत पर गाया नहीं है
ज़ख़्म तो वह नहीं देता किसी को
किसी को पर हँसा पाया नहीं है
ज़रा वह आँख खोलेगा कभी तो
अभी पर होश में आया नहीं है
</poem>
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सलीक़़ा़ सीख ही पाया नहीं है
तभी रोना उसे आया नहीं है
बहुत ताज़ा नहीं लगता अभी वो
मगर देखो ये कुम्हलाया नहीं है
कहानी अब नहीं कहता नई वो
पुराना गीत पर गाया नहीं है
ज़ख़्म तो वह नहीं देता किसी को
किसी को पर हँसा पाया नहीं है
ज़रा वह आँख खोलेगा कभी तो
अभी पर होश में आया नहीं है
</poem>