भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नस्लभेद / अरविन्द भारती

1,402 bytes added, 12:36, 26 फ़रवरी 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरविन्द भारती
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वो एक रात थी
मासूम सी
निर्दोष सी

जिसके होंठों पर
लोरियाँ थी
और था एक वादा
मीठी नींद का

वो एक रात थी
उसका आना
निश्चित था
चाहे चाँद साथ हो
या ना हो
वो अपने वादे की
पक्की थी

पर
लोगो ने
उसे
बदनाम कर दिया
किसी ने काली कहा
किसी ने खौफनाक
और
किसी ने हत्यारी तक
कह दिया

वो फूट-फूट के
रोती रही
अपनी किस्मत पर
किसी से कुछ ना बोली
बस रोती रही
और सोचती रही
जिसके लिए
उसे बदनाम किया गया
वो सब काम तो
दिन में भी होते है
तो फिर उस पर ही
ये तोहमत क्यों?
क्या वह भी हो गई है शिकार
औरों की तरह
नस्लभेद की।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,127
edits