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|रचनाकार=अरविन्द भारती
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}}
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<poem>
आँख मूंदने से
विपत्तियाँ नहीं जाती
ना भागने से
कबूतर ने देखा
मौत ठीक सामने खड़ी है
उसने जंग पर जाते
सैनिक की तरह
बच्चों से प्यार किया
फिर
बाज की आँखों से आँखे मिलाई
उसकी आँखों में
यकबयक खून उतर आया
और उसने पंख खोल दिए।
</poem>
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आँख मूंदने से
विपत्तियाँ नहीं जाती
ना भागने से
कबूतर ने देखा
मौत ठीक सामने खड़ी है
उसने जंग पर जाते
सैनिक की तरह
बच्चों से प्यार किया
फिर
बाज की आँखों से आँखे मिलाई
उसकी आँखों में
यकबयक खून उतर आया
और उसने पंख खोल दिए।
</poem>