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बताओ मुझे! / पूनम मनु

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<poem>
मैंने जब भी फैलाईं हथेलियाँ
एक लकीर में तुम दिखीं बहना
एक लकीर में माँ
मैं कहीं नहीं थी।

भाग्य की रेखा कमजोर थी सदैव
डरी-सहमी पूरी हथेली पर उभरे जाल से
बार-बार समझाते कि
हमें मत बांटो माँ
ना एक छोटे भाई के पास नहीं
ना एक बड़े भाई के पास नहीं
हम तीनों मिलकर अलग रहेंगे शान से
कमजोर रेखा कमजोर ही रही
कटी-फटी महीन-सी अमावस के चाँद-सी
लुकाछिपी खेलती रही उम्रभर

जीवन रेखा छोटी थी
छोटी ही रही अंत तक
जीने को कसमसाते भी छटपटाती
हौसले से भरी भी
मुक़ाबला हार गई प्याले से मिली मौत से

मेरा भाग्य बदलता तो बदलती जीवनरेखा
भाग्य रेखा मजबूत होती तो लंबी होती जीवन रेखा
अब मेरे हाथों में न जीवन रेखा है न भाग्य रेखा।
ऐसे जीने में क्या बेहतर है बताओ मुझे!
</poem>
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