भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपाली अग्रवाल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपाली अग्रवाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
न जाने कितने पृष्ठ कोरे रह गए
हवाओं में अदृश्य हो गए शब्द
कितने भाव आए और चले गए यूं,
जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु पर
दे दी जाती है तिलांजलि
कितनी कलम थीं जो घिस गयीं
उनकी स्याही में कोई रंग नहीं था
कितनी बार देह कांपी लिखते हुए;
सब कुछ तो लिखा नहीं जा सकता
शब्दकोष के उच्च शब्दों का चुनाव ज़रूरी है
तिस पर वे समझते हैं कि जितना लिख गया कवि
उतना ही वह कहना चाहता था
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपाली अग्रवाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
न जाने कितने पृष्ठ कोरे रह गए
हवाओं में अदृश्य हो गए शब्द
कितने भाव आए और चले गए यूं,
जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु पर
दे दी जाती है तिलांजलि
कितनी कलम थीं जो घिस गयीं
उनकी स्याही में कोई रंग नहीं था
कितनी बार देह कांपी लिखते हुए;
सब कुछ तो लिखा नहीं जा सकता
शब्दकोष के उच्च शब्दों का चुनाव ज़रूरी है
तिस पर वे समझते हैं कि जितना लिख गया कवि
उतना ही वह कहना चाहता था
</poem>