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<poem>
हमसे पूछो कैसे-कैसे जाना है ।
ग़र तुमको दुनिया से आगे जाना है ।

थोड़ी देर का मिलना लिक्खा था अपना,
फिर दोनों को अपने रस्ते जाना है ।

कभी-कभी तो ग़ुस्सा भी आ जाता था,
जब वो आते ही कहते थे 'जाना है !'...

मंज़िल का रस्ता दिखलाकर माँ बोली,
देखो बेटे ! ऐसे-ऐसे जाना है ।

इस दुनिया में रोते-रोते आये थे,
इस दुनिया को रोते-रोते जाना है ।
</poem>
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