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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय राही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पुराने ठाँव से रहती है लिपटी ।
ग़रीबी गाँव से रहती है लिपटी ।
हमारे खेत की मिट्टी है साहब !
हमेशा पाँव से रहती है लिपटी ।
इसे पानी से नफ़रत हो गई क्या?
ये मछली नाँव से रहती है लिपटी ।
वो मेरी जान है 'राही' जो मेरे,
बदन की छाँव से रहती है लिपटी ।
</poem>
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पुराने ठाँव से रहती है लिपटी ।
ग़रीबी गाँव से रहती है लिपटी ।
हमारे खेत की मिट्टी है साहब !
हमेशा पाँव से रहती है लिपटी ।
इसे पानी से नफ़रत हो गई क्या?
ये मछली नाँव से रहती है लिपटी ।
वो मेरी जान है 'राही' जो मेरे,
बदन की छाँव से रहती है लिपटी ।
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