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Kavita Kosh से
चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब ?
हम समय में गुम हो चुके हैं
ढकेल दिया गया है हमें कमरे से समय के बाहररात और अतल गहराइयों के पार उड़ती पत्तियाँ आत्माएँ हैं हम ।
कौन जानता है कि ईश्वर के चारों ओर उड़ान नहीं भरी है हमने
उसे देखा देखे बिना ही बिजली की सी तेज़ गति से हम बदल गुज़र गए झाग मेंउसके पास से
इसलिए उसने हमारे बीजों को फेंक दिया
अन्धेरी पीढ़ियों के बीच ।