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Kavita Kosh से
चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब ?
हम समय में गुम हो चुके हैं
ढकेल दिया गया है हमें समय के बाहरमें
रात और अतल गहराइयों के पार उड़ती आत्माएँ हैं हम ।
इसलिए उसने हमारे बीजों को फेंक दिया
अन्धेरी पीढ़ियों के बीच ।
अब दोषी कौन है ?
बादलों के गोले हमारे साथ ऊपर ही ऊपर उड़ते जाते हैं
हलकी हवा पहले ही हमें लुंज-पुंज कर रही है