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<poem>
चोट खाते रहे मुस्कुराते रहे
दर्दे दिल हम सभी से छुपाते रहे

अश्क़ बह न सकें बस यही सोचकर
बंद पलकें किये गुनगुनाते रहे

वो समझते रहे बेवफ़ा हम ही हैं
हम भी सच्चा उन्हें ही बताते रहे

लोगों ने तो दिये हम को ताने बहुत
चुप रहे और तोहमत उठाते रहे

वो सताते रहे हम को ख़ामोशी से
दे सदायें जिन्हें हम बुलाते रहे

वो रक़ीबों के पहलू में बैठे रहे
और दामन हमीं से बचाते रहे

रिश्तों का मर्म आख़िर बताते किसे
हम ही हालात से बस निभाते रहे

इक ख़ला सी रही दिल के वीराने में
फूल काग़ज़ के जिसमें खिलाते रहे
</poem>
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