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आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है न भूलो,
कंटकों ने सिर हमें सादर झुकाया है न भूलो,
भारत माता
भारत माता
सिन्धु का मथकर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए,
औ' हमारे तेज से सूरज लजाया है न भूलो! भूलो।
वे हमीं तो हैं कि इक हुंकार से यह भूमि कांपी,
वे हमीं तो हैं जिन्होंने तीन डग में सृष्टि नापी,
और वे भी हम कि जिनकी सभ्यता के विजय रथ की
धूल उड़ कर छोड़ आई छाप अपनी विश्वव्यापी! विश्वव्यापी।
वक्र हो आई भृकुटी तो ये अचल नागराज डोले,
दश दिशाओं के सकल दिक्पाल ये गजराज डोले,
डोल उट्ठी है धरा, अम्बर, भुवन, नक्षत्र-मंडल,
ढीठ अत्याचारियों के अहंकारी ताज डोले! डोले।
सुयश की प्रस्तर-शिला पर चिह्न गहरे हैं हमारे,
ज्ञान-शिखरों पर धवल ध्वज-चिन्ह हैं लहरे हमारे,
वेग जिनका यों कि जैसे काल की अंगड़ाइयाँ हों,
उन तरंगों में निडर जलयान ठहरे हैं हमारे! हमारे।
मस्त योगी हैं कि हम सुख देखकर सबका सुखी हैं,
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