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|रचनाकार=दीप्ति मिश्र
|संग्रह=है तो है. / दीप्ति मिश्र
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|नाम= है तो है
|रचनाकार=[[दीप्ति मिश्र]]
|प्रकाशक= दिल्ली
|वर्ष= 2002
|भाषा=हिन्दी
|विषय=ग़ज़लें
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वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से, बगावत है तो है सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया अब ज़माने की नज़र में, ये हिमाकत है तो है कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे ग़ैर न हो जाये वो बस, इतनी हसरत है तो है जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या खता रात भर जलना-जलाना, उसकी किस्मत है तो है दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे फ़िर भी उस जालिम पे मरना, अपनी फ़ितरत है तो है दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ दूरियों के बाद भी, दोनों में कुर्बत * [[है तो है/ दीप्ति मिश्र]]
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