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लिपटी थी धुंध की
शीतल शॉल
7उठते गएभवन फफोले- सेहरी धरा पे8ठूँठ जहाँ हैंकभी हरे-भरे थेगाछ वहाँ पे9लोभ ने रौंदीगिरिवन की कायाघाटी का रूप10हरी पगड़ीहर ले गए बाज़चुभती धूप11हरीतिमा कीऐसी किस्मत फूटीछाया भी लूटी12कड़ुआ धुआँलीलता रात-दिनमधुर साँसें
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