भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=निलिम कुमार
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
लहरें पानी में उठ रही हैं
रजत-सुनहरी लहरें।
लहरें मछलियों में बदल गई हैं।
लहरें प्रतिकूल दिशा में बह रही हैं,जाल और फंदों फन्दों से आदमी लहरों को पकड़ रहे हैं।
टोकरियाँ लहरों से भरी गई हैं,लहर-रक्त से सने हैं माँस छीलने के चाकू।
लहरें दमक रही हैं,नमक और हल्दी की रंगत से।
औरतें लहरों से दोपहर पका रही हैं,कटोरे लहरों में छलछला आए हैं।
लहरें जा रही हैं,मनुष्यों के पेट में।
एक असम्भव कविता की तरह
रजत-सुनहरी लहरें ।
'''मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>