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{{KKRachna
|रचनाकार=निलिम कुमार
|अनुवादक=राजेन्द्र शर्मा अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
चट्टान की दरारें और चट्टान के गड्ढे
भरे थे चाँद चान्द से
दमक रहा था उसका सुडौल निर्वसन शरीर
कानों के गहवर गह्वर में भरती जाती जा रही थी पीली हवा
चाँद चान्द की रोशनी में पीले हुए जाते थे मेरे जूतेचाँदनी चान्दनी में जैसे हर कोई हो जाना चाहता हो निर्वसन
कसमसाने लगे मेरे वस्त्र
वह ऐंठ रही थी चट्टान पर मुड़ते-मुड़तेमेरे होंठों पर झुक आईथी । 
पीली हवा और चाँदनी में
एक सफ़ेद देवदारु वृक्ष के नीचे
मोम हुई दो पल के लिए वह चट्टान
फिर अचानक गड़ गया एक जंगली काँटा
और आश्चर्य
कि मेरा ख़ून लाल नहीं
पीला था।था ।
'''मूल बांगला से अनुवाद - राजेन्द्र शर्मा: अनिल जनविजय'''
'''प्रस्तुत है इसी कविता का एक और अनुवाद'''
दुनिया की सबसे सख्त सख़्त चट्टान एक सफ़ेद देवदारके नीचे सो रही थी. थी। व्हिस्की का पीला नशा मुझेइस चट्टान तक ले आया. आया। मुझे नहीं मालूम किसकी
खोज में चट्टान की दरारें और तरेड़ें चाँदनी से भर गई थीं,
चट्टान की क्रिस्टल देह किसी नग्न लड़की की तरह दमक रही थी,कान की मांद मान्द में एक पीली हवा सरसरा रही थी
मेरे जूते चाँदनी में ज़र्द पड़ रहे थे. थे। सब कोई
जैसे चाँदनी में नग्न होना चाहता था, मेरे वस्त्र
बेचैन थे. चट्टान तहाई जा रही थी, मुड़तुड़ मुड़-तुड़ रही थीमेरे ओठों की ओर झुकती हुई
दुनिया की सबसे सख्त सख़्त चट्टान
दो सेकण्ड के लिए नर्म पड़ रही थी
पीली हवा, चाँदनी और एक सफ़ेद देवदार के नीचे
अचानक एक जंगली काँटा चुभ गया मुझे
मेरे पैरों से खून बह निकला और में हैरान रह गया देखकर
की कि लाल नहीं, पीला था मेरा खूनख़ून । '''मूल बांगला से अनुवाद : राजेन्द्र शर्मा'''
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