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|रचनाकार=रूपम झा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
आपने जो भी किया, अच्छा किया
रख लिया है फासला, अच्छा किया
मेघ तुमने भूख से रख दुश्मनी
सिंधु को सावन दिया, अच्छा किया
बोलती तो टूट जाता, वास्ता
चुप रही, सब सुन लिया, अच्छा किया
मुफ़लिसों को मुफ़लिसी करके अदा
हो गये हो तुम ख़ुदा, अच्छा किया
मेरे दिल में घर बनाकर ए सनम!
फिर बदल डाला पता, अच्छा किया
</poem>
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आपने जो भी किया, अच्छा किया
रख लिया है फासला, अच्छा किया
मेघ तुमने भूख से रख दुश्मनी
सिंधु को सावन दिया, अच्छा किया
बोलती तो टूट जाता, वास्ता
चुप रही, सब सुन लिया, अच्छा किया
मुफ़लिसों को मुफ़लिसी करके अदा
हो गये हो तुम ख़ुदा, अच्छा किया
मेरे दिल में घर बनाकर ए सनम!
फिर बदल डाला पता, अच्छा किया
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