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नफ़रत के सिवा जिनको कुछ भी न नज़र आए,
क्या जान सकेंगे वो फ़िर फिर बात महब्बत की।
जीने का सलीक़ा और अंदाज़ सिखाती है,
ख़ुशबख़्त हो तुम 'अम्बर' जो रोग लगा ऐसा,
हर शख़्स नहीं पाता सौगात सौग़ात महब्बत की।
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