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बाल कविताएँ / भाग 15 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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13:44, 3 मई 2020
रूठ बंदरिया घर को जाती
बंदर उसे मनाकर लाता।
कान
पकड़कर्।
पकड़कर,
नाक रगड़कर
देखो सबका मन बहलाता ।
वीरबाला
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