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|संग्रह=शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है / ज्ञानेन्द्रपति
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घुटने मोड़ पर बैठी हुई यह लड़की
शाम के इंतज़ार में है
धुँधलके के इंतज़ार में
दिन उतर आया है उसके घुटनों तकघुटने मोड़ पर कर बैठी हुई यह लड़की <br>शाम दिन के अपने पैरों तले आ जाने के इंतज़ार में है <br>धुँधलके अँधेरे के इंतज़ार में<br><br>
दिन उतर आया है उसके घुटनों तक<br>तब अपने केशों पर फिरायेगी वह हाथघुटने मोड़ कर बैठी हुई यह लड़की<br>और बदल जाएगा उसका भेसउसके सपाट चेहरे पर जल उठेंगी उसकी आँखेंदिन के अपने पैरों तले जाने के इंतज़ार जाएगी उनमें वह चमक जो केवलबुरी स्त्रियों की आँखों में होती है <br>अँधेरे के इंतज़ार में<br><br>लालसा और घृणा से भर देने वाली चमक
तब अपने केशों पर फिरायेगी वह हाथ<br>और बदल जाएगा उसका भेस<br>उसके सपाट चेहरे पर जल उठेंगी उसकी आँखें<br>आ जाएगी उनमें वह चमक जो केवल<br>बुरी स्त्रियों की आँखों में होती है <br>लालसा और घृणा से भर देने वाली चमक<br><br> आहिस्ता चलती हुई<br>अपने शिकार की तलाश में निकलेगी इस मैदान में<br>और एक बार फिर <br>शिकार की तलाश में घूमते <br>किसी लोलुप व्याघ्र का शिकार होगी<br>अपने विलाप को मुस्कराहट में बदलती हुई।<br><br/poem>
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