भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मैं नहीं चाहता
कोई झरने के संगीत सा
मेरी हर तान सुनता रहे [[चित्र:IMG2672A.jpg|thumb|250px|Nomaan Shauque]]
एक ऊंची पहाड़ी प' बैठा हुआ
सिर को धुनता रहे।
Anonymous user