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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
वे और होंगे
जो रात के किसी पहर में
आँख लगने के इन्तज़ार में
कहते हैं कि ज़िन्दा रहेंगे
तो कल तुझे देखेंगे
हाँ, यह मैं हूँ.. मैं
जो रात को
मलकर अपने बदन पर
हठ करती नींद को
दबाकर तकिए के तले
कहता हूँ तुझे
कि मुझे देखना हो
तो कल फिर आ जाना
सूरज !
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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वे और होंगे
जो रात के किसी पहर में
आँख लगने के इन्तज़ार में
कहते हैं कि ज़िन्दा रहेंगे
तो कल तुझे देखेंगे
हाँ, यह मैं हूँ.. मैं
जो रात को
मलकर अपने बदन पर
हठ करती नींद को
दबाकर तकिए के तले
कहता हूँ तुझे
कि मुझे देखना हो
तो कल फिर आ जाना
सूरज !
</poem>