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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
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|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
भींतें ही भींतें खड़ी करके
छतें बनाईं तो क्या
दरूजे बनाए तो क्या...

कल
जब प्रलय आएगा...
लम्बी ख़ामोशी के बाद
खण्डहरों के बीच
बची रह गई
उदास चौखटों के अवशेषों से
सिर भिड़ाएगा आदमी...

फिर से
भींतों में क़ैद होने को
विवश हो जाएगी सभ्यता !
</poem>
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