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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बीस बरस तक
गर्म रेत पर सुलाकर
ठूँसते रहे
अपना जिस्म मुझमें -
अब कहते हो
कि मैं रेगिस्तान हूँ...
राख होने तक
झेलूँगी तुम्हें...
मैंने तुम्हारा वरण किया है
तुम्हारे झूठ का नहीं !
</poem>
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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
बीस बरस तक
गर्म रेत पर सुलाकर
ठूँसते रहे
अपना जिस्म मुझमें -
अब कहते हो
कि मैं रेगिस्तान हूँ...
राख होने तक
झेलूँगी तुम्हें...
मैंने तुम्हारा वरण किया है
तुम्हारे झूठ का नहीं !
</poem>