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जिंदगी ज़िन्दगी का बोझ उठाया न गया तो
लाश ही कंधे पर उठा ली उसने
सब सोच रहे-
कठकरेजी होगा वह
 
रोया नहीं एक बार भी
 
बीवी के मरने पर रोना तो चाहिये था
कैसे रोता वह-
मर गयी थी इंसानियत पहले ही
उसके लिए
 
कैसे रोता वह-
बिटिया जो साथ थी उसके
सयानी सी
उम्र और मन दोनों से
 
कैसे रोता वह-
दिखावा थोड़े न करना था उसे
शिकायत थोड़ी न करनी थी उसे
कैसे रोता वह
 
क्यों रोता वह-
जब बीवी ही मर गयी
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