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आज मेरा मन तुम्हारे गीत गाना चाहता है।
चाहते थक कर दिवाकर-चँद्र चंद्र नभ का शाँत शांत कोना,
सह सकेगी अब न वृद्धा भूमि सब का भार ढोना,
जीर्ण जग फिर से नई दुनिया बसाना चाहता है।
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