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गुलमोहर / रेखा राजवंशी

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<poem>
ये लाल गुलमोहर
मुझे याद दिलाता है
वो लाल रंग
जो अचानक
तुम्हारी आँखों में समा गया था
अंतिम मुलाकात बन
जाने क्यों हर ओर
गम ही गम छा गया था


और मैं देखती रही
आकाश में पैदा होते
और विलीन हो जाते इन्द्रधनुष को।


कि मैं नहीं चाहती
इन्द्रधनुष के रंगों को तकना
बिखरे तिनकों को चुनना
और तुम्हारी आवाज़ को सुनना


कि मेरा अस्तित्व मेरा अपना है
कि जला डालती है मुझे
गुलमोहर के लाल रंग से
बरसती आग

कि मुझे प्रतीक्षा है
गुलमोहर मुरझाने की
और कुछ न पाकर फिर
'कुछ' तो पा जाने की
<poem>
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