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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नोमान शौक़ }} '''1. उत्तारी उत्तरी-गोलार्ध्द से दक्षिणी -गोलार्ध्द तक<br />
एक मरीचिका से दूसरी मरीचिका तक<br />
दौड़ते -दौड़ते थक चुके हैं हम<br />
प्रदूषण, अन्वेषण और अविष्कार के युग में<br />
कहीं दिखाई नहीं देती <br />
और मुठभेड़ में<br />
किसी आतंकवादी के मरने की ख़बर पाकर<br />
अपनी कलाइयां कलाइयाँ सूनी करनी पड़ जाएंजाएँ<br />
मेरी ही बीवी को<br />
क्या पता!<br />
सदियों पहले <br />
चार पत्नियां पत्नियाँ रखने की इजाज़त से बुनी<br />
पुरानी, अवास्तविक चारपाई पर हम<br />
या सम्भोग कर रहे हैं<br />
काश समझ पाते आप !<br />
'''2. आप ही की तरह<br />
बहना चाहते हैं हम भी<br />
बिना थके और बिना रुके<br />
अपनी गर्म जेब में हाथ डाले<br />
बुरा नहीं लगता हमें भी<br />
किसी अच्छे रेस्तरां रेस्तराँ में जाना<br />
अपनी अर्धांगिनी के साथ<br />
ख़रीदना चाहते हैं हम भी<br />
अपने बच्चे के लिए खिलौने<br />
और किताबें<br />
जिसके बिना भी वह<br />
मांगती रहती है दुआएंदुआएँ<br />
सारे जग की सलामती के लिए<br />
हम भी ख़रीदना चाहते हैं<br />