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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नोमान शौक़ }} कितना ख़ुन ख़ून बह गया है<br />
कविता की कटी हुई नसों से<br />
गन्दी नालियों में गिर गए हैं<br />
कितने ही ऊंचे ऊँचे विचार<br />शब्द मुर्छित मूर्छित पड़े हैं<br />औेंधे मुंह मुँह फ़र्श पर<br />कैसी -कैसी उपमाएंउपमाएँ<br />
कराह रही हैं<br />
काग़ज़ के एक कोने से दबी<br />