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|रचनाकार=पं. चतुर्भुज मिश्र
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}}
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<poem>
चम्पारन के देखीं हाल ।
मन-चित लाई सुनी हवाल ॥
सोमेश्वर के ई धरती हऽ परम पूज मनभावन
चम्पा के जगल के कारण नाम परल चम्पारण
पश्चिम दक्खिन बहे गंडकी उत्तर में बाटे नेपाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ।
रंग बिरंगी ई धरती हऽ जइसे पत्ता बावन
जेठ जुड़ाइल पूस पुराइल रिमझिम-रिमझिम सावन
इहां बुझाला की बसंत भी बइठल बाटे डेरा डाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
खोली ना इतिहास झरोखा अब पन्ना पलटाके
योगापट्टी योगतटी हऽ देखीं रउआ जाके
वाल्मीकि के ज्ञान के गढरी लुटा आज भइले कंगाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
हिंदु मुस्लिम सिख इसाई के तऽ इहंवा मेला
नन्दनगढ़ के बात कहीं का चानकीगढ़ अलबेला ।
बौद्ध धर्म स्तंभ इहाँ बाटे रखले सब कुछ संभाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
रामनगर बेतिया के रहे फेर आइल अंगरेजी
घर-घर बढ़ल तबाही इंहवा निलहन के बस तेजी
जनता के तऽ निकलल हड्डी, जमींदार के उठल गाल
चम्पारन के देखीं हाल ॥
बापु के भितिरहरवा बवुआ देखऽ इंहवे बाटे
संख फुंकाइल आजादी के सेहरा एकरे माथे
भगत सिंह भी अइले इंहवां काटे महतारी के जाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
हमनी तऽ बुझत बानी जा तू केतनो बतिअइबऽ
जात-पात के भेद ना आई केतनो तीर चलइबs
कतहीं और चलाव जाके, इंहाँ गली ना तोहरो दाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
सोसन के जंगल अब भी केतना बा इहवां गसल
निलहन से इबरल ई धरती मिलहन में जा फंसल
जबले रहब निरक्षर रउआ कटी ना ई महाजाल
चम्पारण के देखीं हाल।।
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<poem>
चम्पारन के देखीं हाल ।
मन-चित लाई सुनी हवाल ॥
सोमेश्वर के ई धरती हऽ परम पूज मनभावन
चम्पा के जगल के कारण नाम परल चम्पारण
पश्चिम दक्खिन बहे गंडकी उत्तर में बाटे नेपाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ।
रंग बिरंगी ई धरती हऽ जइसे पत्ता बावन
जेठ जुड़ाइल पूस पुराइल रिमझिम-रिमझिम सावन
इहां बुझाला की बसंत भी बइठल बाटे डेरा डाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
खोली ना इतिहास झरोखा अब पन्ना पलटाके
योगापट्टी योगतटी हऽ देखीं रउआ जाके
वाल्मीकि के ज्ञान के गढरी लुटा आज भइले कंगाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
हिंदु मुस्लिम सिख इसाई के तऽ इहंवा मेला
नन्दनगढ़ के बात कहीं का चानकीगढ़ अलबेला ।
बौद्ध धर्म स्तंभ इहाँ बाटे रखले सब कुछ संभाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
रामनगर बेतिया के रहे फेर आइल अंगरेजी
घर-घर बढ़ल तबाही इंहवा निलहन के बस तेजी
जनता के तऽ निकलल हड्डी, जमींदार के उठल गाल
चम्पारन के देखीं हाल ॥
बापु के भितिरहरवा बवुआ देखऽ इंहवे बाटे
संख फुंकाइल आजादी के सेहरा एकरे माथे
भगत सिंह भी अइले इंहवां काटे महतारी के जाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
हमनी तऽ बुझत बानी जा तू केतनो बतिअइबऽ
जात-पात के भेद ना आई केतनो तीर चलइबs
कतहीं और चलाव जाके, इंहाँ गली ना तोहरो दाल ।
चम्पारन के देखीं हाल ॥
सोसन के जंगल अब भी केतना बा इहवां गसल
निलहन से इबरल ई धरती मिलहन में जा फंसल
जबले रहब निरक्षर रउआ कटी ना ई महाजाल
चम्पारण के देखीं हाल।।
</poem>