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ओने रावा नेह लगा के दगा देहनीं
एने हम फाग के सावन बना देहनीं
हमरा डर नऽइखे कि लोगवा का कहीं
मनवे के बात सभके सोझा जता देहनीं
रावा असहीं नाच गा के जसन मनावत रहीं
हमार त जिनिगिया के नरक बना देहनीं
सुखलो रंग त अब रावा के मजा दिहीं जी
प्रभुजी किसान जस काहे हमके सजा देहनीं
दऽरीं उनुका छाती प मुंग जे बेकहल होखसु
अनकर फिकिरे हम त उमिर बिता देहनीं
बनल रहीं मजा मारत रहीं जिनिगी के रावा
किसान जस कोर आंखिन के भिंजा देहनीं
</poem>
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