1,266 bytes added,
16:07, 6 जून 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatHaiku}}
<poem>
यूँ पहचान
खुद अंदर झाँक
रब को जान!
{{KKBR}}
बदली आई
अखियों में उतरी
जा नहीं पाई
{{KKBR}}
तेरी औ’ मेरी
कब से बन गया
तेरी या मेरी?
{{KKBR}}
आया वो जब
था गुहर - तलब
ले गया सब !
{{KKBR}}
रात जो आई
तुझको न पाकर
नींद न लाई
{{KKBR}}
तेरी दुनिया
बन न पाई, आह!
मेरी दुनिया
{{KKBR}}
तुझ को पाया
तो फिर अकेला क्यूँ
खुद को पाया
{{KKBR}}
कैसा ये रब
चलाए अपनी ही
जाने तो सब !
{{KKBR}}
दूरी ने लूटा
मिलना ज़रूरी था
तिलिस्म टूटा
(तिलिस्म – जादू)
{{KKBR}}
दिल ये फिर
पुराने मश्गलों से
गया है घिर
</poem>