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|रचनाकार=नोमान शौक़
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यह कटा हुआ जंगल नहीं<br />
जला हुआ शहर है<br />
विलुप्त होती प्रजातियों को<br />
बस इन्सान ही तो जलाए गए हैं।<br />
सांपों साँपों की एक भी क़िस्म कम नहीं हुई<br />
बस बच्चे ही तो लापता हुए हैं।<br />
दुकानें ही लूटी गई हैं<br />
हाथी के दांत दाँत या शेर की खाल की<br />
तस्करी तो नहीं हुई।<br />
कौमार्य ही तो छिना है लड़कियों का<br />
गो-हत्या तो नहीं हुई।<br />
जब र्समथन समर्थन में <br />
इतने सारे तर्क हों<br />
तो चुप रहा जा सकता है<br />
अन्तरात्मा की अनुमति के बिना भी।
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