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{{KKRachna
|रचनाकार=नोमान शौक़
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क़तरा क़तरा<br />
हम नज़रें बचाते हैं<br />
भागना चाहते हैं दामन झटक कर<br />
ते जकड़ लेती है पांवपाँव<br />
बाध्य कर देती है क़लम को<br />
घिसटते, थके पैरों से<br />