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नारी / पं. चतुर्भुज मिश्र

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करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी
सदियों की यह व्यथा मलिन मन की मनमानी
जनम दिया उसने हमको और अपना दूध पिलाया
हम सो जायें जाग-जाग कर जिसने रैन बिताया
सारी दुनियाँ छोड़ नेह बंधन हमसे बंध जाता
हमको आये छींक चैन पल में उसका उड़ जाता
उससे बढ़कर क्या दाता है, क्या कोई बलिदानी
करुणा का जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी।

हँस हँस कर सहती पीड़ा मन की मन ही में मारे
फूल लुटाया है हम पर और लिया सदा अंगारे
जो कुछ हमने दिया उसी में कर संतोष दिखाया
त्याग, तपस्या, प्रेम, स्नेह कर, कर के हमें सिखाया
उसके मन की थाह यहाँ कब किसने है जानी
करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी ॥

माता बनकर पाला पोसा बहना बनकर प्यार किया
बनी संगिनी जीवन भर की जन-जन का उपकार किया
सुख में पीछे दुख में आगे ही रहती जो आई
संग साथ रहती जीवन भर बनकर जो परछाई
उसकी कदर कहाँ की हमने, व्यर्थ बने है ज्ञानी।
करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी ॥
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