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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
मन रो सरणाटो
हाको कर्यां कदैई नीं मिटै
मिल कदैई तो
थूं आपो आप सूं

थोड़ी ताळ रैसी
दोयां रै बिचाळै अणबण
रूस मती
फेरूं बात-बंतळ सूं
काम बण जासी
हळका हुय जासी
दोयां रा मन
फेरूं आ नरक बणी दुनिया
सरग बण जासी
मरजाद री
पतळी डोर माथै चालणो पड़सी
इयां हंसणो है
इयां चालणो है
इयां बैठणो है
इयां उठणो है
इयां करो, बियां करो
अर आखी जिनगाणी
घुट-घुट मरो
अै बुरी नजर राखणिया कागला
चूंच तो मारसी।
</poem>
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