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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
सूरज
घणी देर तांई
सूवतो रैवै
हुंवतो रैवै
सुपनां मांय अंधारो
थूं जद चावै
भर सकै
थारै मन मांय रंग
बाथेड़ा तो करणा पड़सी
जीते-जी
अंधारै सूं।
</poem>
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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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सूरज
घणी देर तांई
सूवतो रैवै
हुंवतो रैवै
सुपनां मांय अंधारो
थूं जद चावै
भर सकै
थारै मन मांय रंग
बाथेड़ा तो करणा पड़सी
जीते-जी
अंधारै सूं।
</poem>