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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
राखूं थारै साम्हीं
म्हारै हुवण रो साच
म्हारै बगत रो हेलो
सै कीं ई आं रै मांय

अै सबद
जे म्हारी ओळखाण नीं बण सकै
नीं कर सकै आपरै बगत री
अबखायां सूं जुद्ध, तो
म्हारी कलम रो कांई मोल!

बोल, कीं तो बोल!
चोखा है तो चोखा
अर माड़ा है तो माड़ा
पण हियै सूं निसरया है सबद।
</poem>
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